कोलाज सा....

Saturday, July 11, 2009

आज सुबह की उजली धूप में अतीत के पन्ने सुखा रहा था जो बेवजह ही रात के तन्हाई में गीले हो गए थे

ज़माने के साथ न चल पाना और outdated का लेबल चस्पा हो जाना बचपन से मेरी नियति रहा है....चाहे वो गाँव की टूटी पुलिया पर बैठकर दोस्त उमेश के पावन प्रेम की प्रगति रिपोर्ट सुनना हो या फिर गोविंदा के नृत्य शैली पर दोस्तों का तारीफों के पुल बांधना। ख़ुद को हमेशा से असहज ही महसूस कर पाया....एक दिन ये outdated का लेबल और भी बड़ा और गाढा हो गया जब सुना कि मेरे दोस्त उमेश का प्रेम भी outdated हो गया और उसने मात्र पन्द्रह वर्ष की छोटी उम्र में किसी शहरी लड़की के प्रेम में आत्महत्या कर ली...... बड़े भइया घर के एक मात्र आईने में दिन भर जुल्फें सवारते और परिवार को ज़माने के साथ चलाने की जी-तोड़ कोशिश करते और मैं जाने किन ख्यालों में खोया रहता....दीदी छुट्टियों में शहर से आती तो अंग्रजी के दो-चार शब्द भी लेकर आती जो मेरे बचपन को और भी बूढा बना देते।....एक दिन ऐसे ही बुढ़ापे में और इजाफा हुआ जब मैंने खाने पर बैठकर माँ को सलाह दे डाली की भइया को ऐसा नहीं करना चाहिए....माँ की त्वरित टिप्पणी कि मैं भैया से जलता हूँ....माँ आज भी कहती है की मैं बूढा ही पैदा हुआ था ..आज जब लोकल एरिया नेटवर्क से मालगुडी डेस डाउनलोड करके देख रहा हूँ तो अनायास ही अब तक बीती हुई जिंदगी में अपना बचपन तलाश रहा हूँ.

Followers

About Me

I am Ajeet Shrivastava doing M.Tech from IIT Kanpur and looking for Ph.D. in future...