प्रणाम बंधुओं, ये कविता मैंने तक़रीबन दो साल पहले जर्मनी प्रवास के दौरान लिखी थी और जहाँ तक मुझे याद है मुनिख से स्तुत्त्गार्ट की यात्रा के समय.....इस ठिठुरती हुई ठण्ड की बेला में आप सबको नज़र करता हूँ.....
आज यूँ ही बैठे-बैठे जब आई उसकी याद ।
शब्-ए-बारात की आतिश या चौदवीं का चाँद ॥
जाड़े की ठंडी शामों में बिना स्वेटर निकलना ।
उसका रास्ते में मिलना और सरेआम बिगड़ना ॥
स्वेटर नहीं पहन सकते थे की रट लगा देना ।
और फिर आखिर में मेरे कन्धों को भिगो देना ॥
पता नहीं शिकायत मुझसे है या कि है जाड़े से ।
क्यूँ बेवजह बाहर हो जाती है अपने आपे से ॥
तुम नहीं समझोगे वो बस इतना कहती है ।
जाने किस उधेड़बुन में हमेशा वो रहती है ॥
और फिर दुबक जाती है कहीं सीने में अन्दर तक ।
कोई देख लेगा ना कह दूं मैं तब तक ॥
स्वेटर की सख्त हिदायत दे वो चली जाती है ।
हजार सवाल दुनिया के लिए छोड़ जाती है ॥
सुदूर-देश में ठंडक जब हड्डियाँ गलाती है ।
उसके यादों की गर्मी आज भी राहत पहुंचाती है ॥
शब्-ए-बारात की आतिश या चौदवीं का चाँद ॥
जाड़े की ठंडी शामों में बिना स्वेटर निकलना ।
उसका रास्ते में मिलना और सरेआम बिगड़ना ॥
स्वेटर नहीं पहन सकते थे की रट लगा देना ।
और फिर आखिर में मेरे कन्धों को भिगो देना ॥
पता नहीं शिकायत मुझसे है या कि है जाड़े से ।
क्यूँ बेवजह बाहर हो जाती है अपने आपे से ॥
तुम नहीं समझोगे वो बस इतना कहती है ।
जाने किस उधेड़बुन में हमेशा वो रहती है ॥
और फिर दुबक जाती है कहीं सीने में अन्दर तक ।
कोई देख लेगा ना कह दूं मैं तब तक ॥
स्वेटर की सख्त हिदायत दे वो चली जाती है ।
हजार सवाल दुनिया के लिए छोड़ जाती है ॥
सुदूर-देश में ठंडक जब हड्डियाँ गलाती है ।
उसके यादों की गर्मी आज भी राहत पहुंचाती है ॥
कुछ बातें अवचेतन में कितना प्रभाव छोड़ जाती है.....
ji hna..us pravaas ki sugandh isame he.
ReplyDeletesardiyo ka bhi apna mizaz hota he, har jagah alag sa ehsaas deti he.
yaadein aisi hi hoti hain.
ReplyDeleteatyanta sanvedansheel kavita...
ReplyDelete