कोलाज सा....

Tuesday, April 28, 2009

जो गीत मेरे जेहन में चलता रहा.......

जिंदगी के रंग भी अजीब हैं....कभी मन खुशियों से भर जाता है तो कभी ग़म भी अपनी जगह बना ही लेता है... कल दिन भर जो आवाज मेरे कानों में गूंजती रही, जो गीत मेरे जेहन में चलता रहा....

मेरे साथ चले साया,
धर्मं नहीं, कर्म नहीं जन्म गवायाँ
मेरे लिए दिन भी अँधेरा,
मेरे लिए रात भी लाई सवेरा

गुलज़ार जी के निर्देशन में बनी फ़िल्म 'किताब' का ये गाना दिल के बहुत अन्दर तक उतरता चला जाता है....पूरी फ़िल्म में गुलज़ार का जादू सर चढ़कर बोलता है....जबरदस्त कथानक और उतनी ही सुन्दरता से फिल्माया गया....समरेश बासु जी के उपन्यास 'पथीक' पर आधारित ये फ़िल्म न सिर्फ़ एक बच्चे के मनोविज्ञान को बड़ी ही खूबसूरती से टटोलती है बल्कि पति-पत्नी के आपसी रिश्तों का बच्चों के दिमाग पर क्या असर होता है, बखूबी रखती है....ये गाना श्री राम लागू जी के ऊपर फिल्माया गया है जबरदस्त अभिनय के साथ....पूरी फ़िल्म के साथ इस गाने को इतनी बार सुन चुका हूँ ....लेकिन मन नहीं भरता....एक वैराग्य सा उपजता है ....कंचन जी से कल मैंने कहा था कि ये गाना आपको जरूर सुनाऊंगा प्रेरणा के माध्यम से....पर किन्हीं कारणों से नहीं सुनवा पा रहा हूँ ....कंचन जी और आप सबसे क्षमा-याचना के साथ कोशिश करूँगा की जल्द से जल्द ये गीत आप सब तक पहुँचा सकूं.

Sunday, April 19, 2009

ग्रिगोरी पेरेलमन और गणित का दुर्भाग्य: हम कहाँ हैं?

शुरुआत करते हैं शीर्षक के अन्तिम हिस्से से. हमारे देश में अभी जो जुमला बहुत आम है खासकर ऐसे संस्थानों में जहाँ शोध होता हो कि आजकल अच्छे बच्चे शोध में आते कहाँ है। लेकिन हम कहें जी जो भूले भी जाते हैं उनकी प्रतिभा का गला घोंटने में यहाँ कोई संकोच नहीं होता है। फिलहाल विभाग में जो अभी चर्चा का विषय है कि दो रिसर्च स्कॉलर्स को कॉम्प्रेहेंसिव (एक परीक्षा जो लिखित और मौखिक दोनों तरह से ली जाती है और उसमें क्लेअर होने के बाद आपको शोध जारी रखने कि अनुमति दी जाती है) में अनुत्तीर्ण कर दिया गया है। पूरे मामले का सबसे दुखद पहलू ये है कि उसमें से एक यहीं पर अपने विभाग का टापर रह चुका है। जाहिर है परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही है.........

आते
हैं शीर्षक के पहले हिस्से पर, ग्रिगोरी पेरेलमन लेनिनग्राद (आज का सेंट पीटर्सबर्ग, रूस) १३ जून १९६६ में पैदा हुए और २००२ में मशहूर हुए सदी पुरानी एक गणित में सबसे कठिन मानी जाने वाली समस्या को हल करके (Poincaré conjecture: 1904) जिसके लिए बाद में उन्हें फील्ड मैडल (२००६) से नवाजा गया जो विषय विशेष में नोबेल प्राइज के बराबर माना जाता है और मजे की बात पेरेलमन जी ने अवार्ड लेने से साफ़ माना कर दिया। और जो कारण सामने आया वो शोध समुदाय को आईना दिखा गया.....

(Perelman says in a The New Yorker article that he is disappointed with the ethical standards of the field of mathematics, the article implies that Perelman refers particularly to Yau's efforts to downplay his role in the proof and play up the work of Cao and Zhu).....

सम्प्रति पेरेलमन जी गणित में सक्रिय नहीं है और अपने माँ के साथ सेंट पीटर्सबर्ग में एक बेरोजगार का जीवन जी रहे हैं। महज ४२ साल की उमर और उनका इस तरह से गणित का छोड़ना....नुकसान तो गणित का ही हुआ .....फिलहाल प्रतिभाओं का कत्ले-आम जारी है कारण जो भी हो....

साभार-विकीपीडिया



जिंदगी को इस तरह से जी कि मौत से मिलना हुआ अभी-अभी,
दुआ-सलाम की और कहा कि मिलते रहा करो कभी-कभी.

Friday, April 17, 2009

प्रेरणा

हिन्दी ब्लॉग परिवार को मेरा प्यार भरा नमस्कार....आज आया हूँ आप सबके बीच तो इसका सारा श्रेय कंचन जी (हृदय गवाक्ष) को जाता है जिनकी लेखनी का मैं हमेशा से कायल रहा हूँ ...... आज के पहले मेरा नाता हिन्दी ब्लॉग से एक पाठक भर का ही था और थोड़ा बहुत टिप्पणीकार का भी.... सच कहूँ तो बचपन से मैं दुनिया को बहुत आश्चर्यमिश्रित भाव से देखता आया हूँ ....कैसे सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है ना जुड़कर भी.....कहाँ-कहाँ किससे क्यूँ मैं जुड़ता चला गया मैं आज तक नहीं समझ पाया .... कुछ इसी तरह के आश्चर्यमिश्रित भाव आपके साथ् साझा करने का माध्यम मैंने प्रेरणा को बनाया है....आशा है की आप सबसे प्रेम और सहयोग मिलता रहेगा।



जब भी ख़ुद के होने का सुबहा होने लगता है,
दूसरों की जिंदगी में ख़ुद के मायने तलाशता हूँ.


अजीत

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I am Ajeet Shrivastava doing M.Tech from IIT Kanpur and looking for Ph.D. in future...